बढ़ती हुई आबादी एवं जलवायु परिवर्तन उन्नत खेती के लिए चुनौती-डॉ. ब्रैम गोवार्ट्स

नई दिल्ली। दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्था में कृषि की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसका प्रभाव यहां के जीवन और आजीविका में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। मगर यहां की बढ़ती हुई आबादी एक चिंता का विषय है, जिस वजह से आर्थिक विकास की चुनौतियां कृषि क्षेत्र पर दबाव डाल रही है और जिससे खाद्यान्न को सुरक्षा और आर्थिक विकास के मद्देनजर भविष्य की मांग को पूरा करना बहुत कठिन होता है। भोजन के अभाव या खाद्य सुरक्षा को लेकर ग्लोबल रिपोर्ट-2022 के मुताबिक करीब 193 मिलियन लोगों के समक्ष मौसम की खराबी, आर्थिक झटके और असुरक्षा चक्र के कारण भूख की भयावह स्थिति की आशंका बनी रहती है। इंटरनेशनल मेज एंड व्हीट इंप्रूवमेंट सेंटर जिसे स्पेनिश के संक्षिप्त शब्द में सीआईएमएमवायटी जाना जाता है यह एक अंतरराष्ट्रीय कृषि अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संगठन है जो दुनिया के सबसे दो महत्वपूर्ण अनाज मक्का और गेहूं से संबंधित फसल प्रणाली और आजीविका पर काम करता है इसे हम मक्का गेहूं के अनुसंधान और कृषि प्रणालियों में कार्य करने वाला दुनिया का सबसे बड़ा संगठन कहते हैं अफ्रीका एशिया और लैटिन अमेरिका जैसे विभिन्न देशों में सालाना उनकी लगभग 35 नई किस्में यानी डूरुम को विकसित और प्रसारित करता है। कहते हैं कि यह उन्नत किस्म में भयंकर जैविक बदलाव एवं प्रतिकूल मौसम में भी बेहतरीन गुणवत्ता वाले अनाज उत्पादन की क्षमता रखता हैं। इस बीबीडब्ल्यू 187 नामक किस्म को 2018 में भारत में आईसीएआर और सीआईएमएमवाइटी ने विकसित किया, जो आज पूरब से पश्चिम देशों में फैल रहा है।

गेहूं के उत्पादन में साझीदारी निभाते हुए आईसीएआर और सीआईएमएमवायटी ने देश के गेहूं उत्पादन को और भी सक्षम बनाया है। कृषि के क्षेत्र में विशेषकर गेहूं और मक्का के उत्पादन कि कई चुनौतियों का समाधान किया है, साथ ही पिछले एक दशक से बीआईएसए के साथ इन दोनों संस्थाओं ने आपसी सहयोग से अधिक खाद्यान्न उत्पादन के लिए उत्तम बीज, तकनीकी, उत्तम कृषि पद्धति लाकर आसान बनाया है। बीआईएसए एवं सीआईएमएमवायटी के डिजिटल ग्राम गोवा ने कहा कि जलवायु परिवर्तन, गरीबी और असमानता के कारण भी इस क्षेत्र की चुनौतियां बढ़ रही है। इसका हल आसानी से करना संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि बीआईएसए यानी दक्षिण एशिया के लिए बोरलाग संस्थान का समावेशी नजरिया अत्यधिक प्रासंगिक है जो इन क्षेत्रों की बढ़ी हुई चुनौतियों पर चिंता जताते हैं।

आईसीएआर और सीआईएमएमवायटी की लंबे समय से चली आ रही उत्पादक साझेदारी ने देश में गेहूं उत्पादन को सक्षम बनाया है। खासकर, कृषि क्षेत्र में गेहूं और मक्का के उत्पादन की कई चुनौतियों का समाधान किया है। इसके अलावा, पिछले एक दशक से आईसीएआर और सीआईएमएमवाईटी के बीच सहयोग के रूप में बीआईएसए ने बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए अधिक भोजन का उत्पादन करने के लिए बेहतर बीज, मशीनीकरण और कृषि पद्धतियों के माध्यम से छोटे खेतों से स्थानीय उत्पादकता में सुधार के लिए खुद को समर्पित किया है।

सीआईएमएमवाईटी और बीआईएसए के डीजी डॉ. ब्रैम गोवार्ट्स (Dr. Bram Gowarts) ने कहा कि आईसीएआर और सीआईएमएमवाईटी की लंबे समय से चली आ रही और उत्पादक साझेदारी ने देश को गेहूं उत्पादन को मजबूत करने में सक्षम बनाया है। हमने मिलकर कृषि के क्षेत्र में विशेष रूप से गेहूं और मक्का उत्पादन के क्षेत्रों में कई चुनौतियों का समाधान किया है। इसके अलावा, पिछले एक दशक से आईसीएआर और सीआईएमएमवाईटी के बीच सहयोग के रूप में बीआईएसए ने बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए अधिक भोजन का उत्पादन करने के लिए बेहतर बीज, मशीनीकरण और कृषि पद्धतियों के माध्यम से छोटे खेतों से स्थानीय उत्पादकता में सुधार के लिए खुद को समर्पित किया है। बीआईएसए यानी दक्षिण एशिया के लिए बोरलॉग संस्थान का सहयोगात्मक, समावेशी दृष्टिकोण आज पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है। एक ऐसे युग में जब खाद्य और पोषण असुरक्षा की चुनौतियां – जलवायु परिवर्तन, गरीबी और असमानता से बढ़ी हुई – एक क्षेत्र द्वारा हल नहीं की जा सकती हैं।

ज्ञात हो कि दक्षिण एशिया में भोजन, आजीविका और पोषण (Food, livelihood and nutrition in South Asia) संबंधी प्रतिभूतियों को सुनिश्चित करने के लिए बीआईएसए का रणनीतिक दृष्टिकोण भारत में तीन अलग-अलग कृषि-जलवायु और सामाजिक-आर्थिक वातावरण में स्थित अपने अनुसंधान केंद्रों पर अपनी अत्याधुनिक अनुसंधान सुविधाओं से प्रेरित है, जो दक्षिण एशिया में संपूर्ण कृषि जगत का प्रतिनिधित्व करते हैं। बीआईएसए के व्यावहारिक, कृषि-तैयार अनुसंधान की चैड़ाई-जलवायु लचीला गांवों की स्थापना और चावल के अवशेषों को जलाने के लिए व्यवहार्य विकल्प विकसित करने से लेकर कुलीन जर्मप्लाज्म और अत्याधुनिक तकनीकों के खुले आदान-प्रदान की सुविधा के लिए न केवल सीआईएमएमवाईटी की नजरिया और दृष्टिकोण को दर्शाता है, बल्कि हमारे पारस्परिक प्रेरणा के दर्शन, नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ नॉर्मन बोरलॉग, जो ज्ञान साझा करने और इसे किसान तक ले जाने में दृढ़ता से विश्वास करते थे। आर्थिक रूप से कमजोर कृषि पारिस्थितिकी प्रणालियों में जलवायु परिवर्तन की नई चुनौतियों को देखते हुए, बीआईएसए और आईसीएआर के बीच साझेदारी जलवायु स्मार्ट और संरक्षण कृषि आधारित प्रथाओं के साथ बेहतर गेहूं और मक्का किस्मों को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

कृषि अनुसंधान यानी आईसीएआर के एमडी डा. अरूण कुमार जोशी ने बताया कि बीआईएसए का लक्ष्य नवीनतम आनुवंशिक, डिजिटल और संसाधन प्रबंधन प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना और भारतीय परिषद के साथ मिलकर काम करके भविष्य की मांगों को पूरा करने के लिए उत्पादकता, लचीलापन, आजीविका और पोषण सुरक्षा को बढ़ाने के साथ-साथ क्षेत्र की कृषि और खाद्य प्रणालियों को मजबूत करने के लिए विकास दृष्टिकोण के लिए अनुसंधान का उपयोग करना है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में, दुनिया लाखों लोगों को प्रभावित करने वाले अभूतपूर्व वैश्विक भूख खाद्य संकट से जूझ रही है। यह प्राकृतिक आपदाओं, महामारी, बढ़ते संघर्ष और खाद्य असुरक्षा और मुद्रास्फीति से और अधिक तनावपूर्ण वैश्विक खाद्य प्रणालियों की नाजुकता को प्रकट करता है। इस प्रकार, वैश्विक खाद्य झटके, जलवायु परिवर्तन की नई चुनौतियों और कृषि व्यापार में बदलती गतिशीलता को संबोधित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।

डॉ. ब्रैम गोवार्ट्स ने कहा कि यह समय की आवश्यकता है कि सरकारें, नागरिक समाज और निजी अभिनेता आज की खाद्य प्रणाली की गड़बड़ी और खाद्य असुरक्षा से निपटने के लिए एक साथ आएं। हमें पारिस्थितिकी तंत्र की विविधता को बढ़ाने और दक्षता से लचीलेपन की ओर कृषि खाद्य परिवर्तन में निवेश करने की आवश्यकता है। हमें लघु, मध्यम और दीर्घकालिक प्राथमिकताओं पर कार्रवाई करके आज से शुरुआत करने की आवश्यकता है। दुनिया को इस संकट का एक साथ जवाब देना है और हम यहां अपने नवाचार और विचारों के साथ योगदान करने के लिए हैं जो एक ही समय में टिकाऊ, लचीला और व्यवहार्य हैं।

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