Editorial : किसानों को सहयोग की अवश्यकता

Editorial: Farmers need support

Editorial: देश के लगभग सभी प्रदेशों में मंडियों की व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता है इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। पिछले वर्ष इन्हीं दिनों दिल्ली की नरेला मंडी, जो एशिया की सबसे बड़ी अनाज मंडी है, उसमें करोड़ों रु पए का अनाज भीग गया था, बारिश से बचाव का कोई पुख्ता इंतजाम नहीं था। मंडी के श्रमिकों के पारिश्रमिक के बारे में भी सरकार को विचार करना चाहिए खाद्य पदाथरे और जीवन की आवश्यकता की वस्तुओं की कीमतें दिनों-दिन बढ़ रही है श्रमिकों की मजदूरी भी बढ़ाई जानी चाहिए। किसानों को मंडी में अपनी मेहनत का पूरा पैसा मिले इसके लिए आवश्यक है कि निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम दर पर खरीद ना की जाए।

मध्य प्रदेश के कई मंडियों में समय से उठान न होने से आवारा पशुओं से अनाज की रक्षा के लिए किसान रात रात भर जाकर अपने फसल की रक्षा करते हैं। अवैध रूप से ट्रक खड़े रहते हैं, मंडी को जोडऩे वाली सड़कों में गड्ढे, सफाई की कमी और मंडी में अतिक्रमण जैसी अव्यवस्था से किसान जूझ रहे हैं। रोहतक की एक मंडी में किसानों को मजबूरी में अपनी फसल प्राइवेट कंपनियों को बेचने के आरोप लगे। ओला और बे मौसम बारिश की वजह से वहां फसल खराब हुई, अधिकारी फसल में नमी के कारण खरीद नहीं कर रहे थे। चरखी दादरी में पहले ही दिन मंडी में हजारों किसान फसल लेकर पहुंचे, लंबी लाइन लग गई, किसानों के वाहन घंटों जाम में फंसे रहे, पुलिस और प्रशासन को स्थिति संभालने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ी।

सभी मंडियों में ऐसी अव्यवस्था नहीं है किंतु काफी संख्या में ऐसे मंडी है जहां व्यवस्था सुधार की एवं मंडी प्रबंधकों और सरकारी विभाग के बीच तालमेल और सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि किसान आसानी से अपनी फसल बेच सकें। अनाज की खरीद के सीजन में मंडियों से जो रिपोर्ट आ रही हैं वे चिंताजनक हैं। मौसम खराब होने की आशंका से किसानों ने भारी मजदूरी देकर समय से फसल कटवा दिया था और अब जब फसल लेकर मंडी पहुंचे तो वहां मौसम की मार झेलनी पड़ी।

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