गुनाहों का इलाज

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संत दर्शन सिंह जी महाराज
इस संसार में हर एक इंसान गुनाहों से भरा हुआ है। गुनाहों से बचना इंसान की पहुँच से बाहर है। हम गुनाहों से तभी बच सकते हैं जब कोई वक्त का पूर्ण गुरु, कोई प्रभु रूप हस्ती हमें हमारे गुनाहों से बचा ले, नहीं तो इन गुनाहों से बचना नामुमकिन है।
हम हर वक्त मन-इंद्रियों के विषय विकारों में फंसे हुए हैं। हमारी अाँख की इन्द्री जब किसी को जिस्मानी तौर पर हसीन देखती है तो खिंच जाती है। कान की इन्द्री अच्छा संगीत सुनकर उधर खिंची चली जाती है। इस तरह नाक की इन्द्री भी अच्छी खुशबू की ओर खिंच जाती है और स्पर्श की इन्द्री भी हमें गुनाहों की ओर धकेलती है। इन इंद्रियों के ज़रिये हमसे हमेशा गुनाह होते ही रहते हैं।
हकीकत तो यह है कि जिसकी एक भी इन्द्री प्रबल होती है उसका बुरा हाल होता है। हम देखें कि परवाने की अाँख की इन्द्री प्रबल है। वह जलती शमा को देखकर उसकी तरफ लपकता है और रोशनी में जलकर राख हो जाता है। इसी तरह हिरन की कान की इन्द्री प्रबल है। वह जंगल में आज़ाद फिरने वाला जानवर है जोकि कूदता है, मगर जब कभी वह ढोल की आवाज़ सुनता है तो अपना सिर वहाँ आकर टेक देता है। उसके बाद सारी उम्र चिड़ियाघर में कैद रहता है। इसी तरह भंवरे की नाक की इन्द्री प्रबल है। जब फूल खिलता है तो वह उसमें बैठ जाता है और रात को फूल के बंद होने पर वह भी उसमें घुट कर मर जाता है।
मछली की भी ज़बान की इन्द्री प्रबल है। बड़ी आज़ादी से दरिया में तैरती है। मगर उसका शिकार करने वाला कांटे में आटा या माँस का कोई टुकड़ा लगा देता है, मछली आकर उस पर मुँह मारती है। जिसका नतीजा यह होता है कि कांटा गले में फँस जाता है और तड़प-तड़प कर उसका जीवन समाप्त हो जाता है।
हाथी कितना बलवान जानवर है, मगर उसकी स्पर्श की इन्द्री प्रबल है। हाथी का शिकार करने वाले एक बहुत बड़ा गड्डा खोदते हैं। फिर उस पर घास-फूस रखकर उसको फंसाने के लिए एक हथिनी का पुतला रख देते हैं। हाथी दूर से आवेग में आता है और छलांग लगाकर गड्डे में कूद जाता है। वहाँ कई दिन तक उसे भूखा-प्यासा रखा जाता है और जिसका नतीजा यह होता है कि वह अपनी सारी उम्र महावत के इशारे पर चलता है।
संत-महापुरुष हमें समझाते हैं कि जिसकी एक भी इन्द्री प्रबल है अगर उसका हश्र या तो मौत है या फिर सारी उम्र गुलामी है तो इंसान का क्या होगा जिसकी पाँचों इंद्रियाँ प्रबल हैं?
इंसान बेचारा इनसे कभी छुटकारा पा ही नहीं सकता। वह तभी छुटकारा पाता है जब उसे कोई पूर्ण संत मिल जाए और उसे वह नामदान की बख्शीश कर ठीक रास्ते पर चला दें। फिर ध्यान-अभ्यास के ज़रिये प्रभु की ज्योति और श्रुति के साथ जुड़ने से उसके सारे गुनाह माफ हो जाते हैं और उसकी आत्मा का प्रभु से एकमेक हो जाती है।

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