जीएसटी : सुधार की दिशा या नई उलझन?
Editorial: GST: Direction of reform or new confusion?

Editorial : हाल ही में सरकार द्वारा वस्तु एवं सेवा कर (GST) के नियमों में किए गए बदलाव ने व्यापार जगत और आम उपभोक्ताओं के बीच एक नई बहस को जन्म दे दिया है। नई संशोधित नीतियों का उद्देश्य राजस्व संग्रहण में पारदर्शिता लाना और कर चोरी पर लगाम कसना बताया जा रहा है, लेकिन कई स्तरों पर इन बदलावों ने व्यावहारिक समस्याएं उत्पन्न कर दी हैं।
सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन यह है कि अब इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) का दावा करने के लिए कड़ाई से ई-इनवॉइस और GSTR-2B का मिलान अनिवार्य कर दिया गया है। छोटे व्यापारियों और MSMEs के लिए यह नई व्यवस्था न केवल तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण है, बल्कि इसका अनुपालन करना भी मुश्किल हो गया है। उन्हें अब विशेषज्ञों की सहायता के बिना जीएसटी फाइलिंग करना कठिन लगने लगा है।
इसके अलावा, जीएसटी पंजीकरण प्रक्रिया में भी कई कड़े नियम लागू किए गए हैं, जैसे कि आधार प्रमाणीकरण के बिना पंजीकरण न होना, और संदिग्ध लेन-देन की स्थिति में स्वतः पंजीकरण रद्द हो जाना। यह कदम कर अपवंचन को रोकने के लिए आवश्यक जरूर है, लेकिन ईमानदार करदाताओं को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।
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इन नियमों के पीछे सरकार की मंशा पर कोई संदेह नहीं किया जा सकता – यह स्पष्ट है कि सरकार कर संग्रह को अधिक व्यवस्थित और निष्पक्ष बनाना चाहती है। परंतु, नियम बनाते समय यह ध्यान देना आवश्यक है कि नीति निर्माण और उसके क्रियान्वयन के बीच संतुलन बना रहे। किसी भी नई प्रणाली का उद्देश्य यदि सुविधा के बजाय जटिलता बन जाए, तो वह नीति अपने आप में असफल मानी जाती है।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत में व्यापार की रीढ़ छोटी और मंझोली इकाइयां हैं। अगर इन पर अनुपालन का बोझ अधिक डाला जाएगा, तो वे या तो अनौपचारिक क्षेत्र की ओर लौट जाएंगी, या फिर बंद होने की कगार पर आ जाएंगी। इससे न केवल रोजगार घटेगा, बल्कि आर्थिक विकास पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा।
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आवश्यकता इस बात की है कि सरकार जीएसटी नियमों में सुधार करते समय व्यापारिक समुदाय के साथ व्यापक संवाद करे। तकनीकी सहायता, प्रशिक्षण, और समयबद्ध मार्गदर्शन से न केवल नियमों का अनुपालन बढ़ेगा, बल्कि व्यापारिक विश्वास भी मजबूत होगा।



