Editorial : तपती गर्मी-सावधानी और संवेदनशीलता की ज़रूरत
Editorial: Scorching heat - need for caution and sensitivity

Editorial : मई का महीना देशभर में गर्मी की चरम सीमा लेकर आता है। तपता हुआ आसमान, झुलसाती ज़मीन और जलते हुए हवाओं का सामना हर वर्ग के नागरिक को करना पड़ता है। हर साल तापमान नए रिकॉर्ड बना रहा है, और यह स्थिति केवल मौसम का स्वाभाविक चक्र नहीं, बल्कि हमारे पर्यावरणीय असंतुलन का परिणाम भी है।
ग्रामीण क्षेत्रों में जहां जल स्रोत सूख रहे हैं, वहीं शहरी इलाकों में बढ़ता कंक्रीट जंगल और घटती हरियाली हालात को और बदतर बना रही है। जल संकट, बिजली की कटौती और स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ इस मौसम को और भी चुनौतीपूर्ण बना देती हैं। मजदूर, किसान, बच्चे और बुजुर्ग इस गर्मी से सबसे ज़्यादा प्रभावित होते हैं।
समस्या का समाधान केवल सरकारों के प्रयासों से नहीं होगा, बल्कि इसके लिए जन-सहभागिता अनिवार्य है। जल संरक्षण, वर्षा जल संचयन, अधिक से अधिक पेड़ लगाना और पारंपरिक संसाधनों की ओर लौटना यह सब मिलकर ही इस चुनौती का सामना कर सकते हैं। साथ ही, मानवीय दृष्टिकोण अपनाना जैसे राहगीरों के लिए पेयजल की व्यवस्था करना, पक्षियों के लिए पानी रखना और दूसरों की मदद करना समाज में सकारात्मकता और संवेदनशीलता को बढ़ावा देता है।
मई की गर्मी हमें केवल तकलीफ नहीं देती, वह हमें चेतावनी भी देती है कि यदि हमने अभी भी पर्यावरण के प्रति अपने दृष्टिकोण में बदलाव नहीं लाया, तो भविष्य और भी कठोर होगा।
Editorial : बड़बोले नेता
समय आ गया है कि हम जल, हरियाली और मानवता के साथ अपने रिश्ते को फिर से मज़बूत करें। तभी मई की यह गर्मी हमारे लिए केवल एक मौसम नहीं, बल्कि बदलाव का अवसर बन सकेगी