Editorial : शिक्षकों का दायित्व
Editorial: Responsibility of teachers
Editorial : गुरु और शिष्य के संबंध बहुत आत्मीय होता है। शिक्षक दिवस शिक्षकों के आदर्श एवं दार्शनिक राज्याध्यक्ष सर्वपल्ली ड़ॉ राधाकृष्णन का जन्म दिवस ५ सितम्बर को मनाया जाता है। आज बदलती हुई परिस्थिति में शिक्षा के स्वरूप में आमूल परिवर्तन की जरूरत है। आज एडवर्ड बेलामी जैसे लोगों को वर्तमान सदी उज्जवल नजर आ रही है, तो एल्वीन टोफ्लर जैसे समाज वैज्ञानिक को भयावह भविष्य नजर आ रहा है। जिसका सामना करने हेतु भावी पीढ़ी को तैयार करने के लिए उन्होंने शिक्षा में आमूल परिवर्तन की सिफारिश की है।
जीवन में माता-पिता का स्थान कभी कोई नहीं ले सकता, क्योंकि वे हमें इस दुनिया में लेकर आते हैं। इसलिए जीवन में सबसे पहले गुरु हमारे माता-पिता होते हैं। भारत में प्राचीन समय से ही सीखने के लिए गुरु व शिष्य परंपरा चली आ रही है और अभी तक भी जीने का असली सलीका हमें शिक्षक ही सिखाते हैं और सही मार्ग पर चलने को प्रेरित करते हैं।
भौतिक वादी होड़ से पूंजीवादी व्यवस्था एवं उपभोक्तावादी संस्कृति पनपी है, तो दूसरी और गरीबों की गरीबी भी बढ़ी है। ऐसी बदलती परिस्थिति में समाज एवं प्रकृति में संभावित परिवर्तनों का अन्दाजा लगाकर भावी पीढ़ी को तैयार करने की जरूरत है। वैदिक काल से ही भारत शैक्षणिक स्तर पर समृद्ध रहा है।
इसी शिक्षा के आधार पर भारत विश्वगुरु कहलाता रहा है। गुरुकुल आधारित शिक्षा प्रणाली भारतीय परंपरा का प्रमुख अंग है। नालंदा और तक्षशिला की स्थापना तथा इसके प्रभाव से भारतीय शिक्षा व्यवस्था की समृद्ध परंपरा को जाना जा सकता है। शिक्षक दिवस एक अवसर है जब हम धुंधली होती शिक्षक की आदर्श परम्परा एवं शिक्षा को परिष्कृत करनेे और जिम्मेदार व्यक्तियों का निर्माण करने की दिशा में नयी शिक्षा नीति के अन्तर्गत ठोस कार्य करें।
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भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए हमें ऐसे ज्ञान, कौशल और दक्षता की आवश्यकता होगी जो हमारी समस्या समाधान में योगदान कर सके। वर्तमान समय में विद्यार्थियों के संदर्भ में एक शिक्षक की भूमिका और भी महत्त्वपूर्ण होती जा रही है क्योंकि उसे न केवल बच्चों का बौद्धिक, नैतिक, मनोवैज्ञानिक तथा शारीरिक विकास करना है बल्कि सामाजिक, चारित्रिक, नैतिक एवं सर्वांगीण विकास भी करना है।