करवा-चौथ

-संत राजिन्दर सिंह जी महाराज

Karva Chauth : करवा चौथ एक पवित्र पर्व है। इसे हम सुहागिनों का त्यौहार भी कहते हैं। इस दिन हिन्दू नारियां परमेष्वर से अपने-अपने पति की लंबी आयु और तंदुरुस्ती के लिए मंगल कामना करती हैं। यह जो व्रत है यह सबसे कठिन व्रत है क्योंकि इस व्रत के मौके पर सारा दिन निर्जल रहना पड़ता है, पानी भी नहीं पीते कुछ खाते भी नहीं।

यह जो व्रत है सुबह तारों की छांव में रखा जाता है और शाम को चन्द्रमा देखकर खोला जाता है। इस दिन हमारी जो हिन्दू महिलाएं हैं वे सज-संवरकर रात को ईश्वर के सामने प्रण लेती हैं कि वो मन, वचन, कर्म से अपने पति के प्रति पूर्ण समपर्ण की भावना दिखाएंगी।

इतिहास में वर्णित कथाओं से हमें यह पता चलता है कि करवा चौथ के क्या फायदे हैं? हमारी जितनी भी हिन्दू नारियां हैं, यह व्रत शुद्धिपूर्वक रखती हैं और यह अनादि काल से चला आ रहा है।

क्या कभी हमने विचार किया कि इस व्रत का अभिप्राय क्या है? इस व्रत का भी अन्य व्रतों की भांति एक आध्यात्मिक महत्त्व है। हमारे देश के ज़र्रे-ज़र्रे में आध्यात्मिकता रची हुई है। हमारे सारे त्यौहार, उत्सव, और व्रत आत्म-उन्नति के लिये ही बनाये गये थे, और ये व्रत आदि अंततः मोक्ष व प्रभु-प्राप्ति के लिये ही रखे जाते थे, परन्तु समय के साथ-साथ असलियत तो गायब हो जाती है और हम रस्मों-रिवाजों में उलझकर रह जाते हैं।

परम संत कृपाल सिंह जी महाराज (Param Sant Kripal Singh Ji Maharaj) अक्सर कहा करते थे कि हमारे जितने भी व्रत हैं, जितने भी त्यौहार हैं उन सबकी बुनियाद में अध्यात्म है और यही हमारे मुल्क की विशेषता है कि सारे रस्मों-रिवाजों की तह में कोई न कोई रूहानी राज़ छुपा हुआ है। आइए हम देखें कि यह जो त्यौहार है करवा चौथ का, इसमें रूहानियत का कौन सा राज़ छुपा हुआ है?

करवा चौथ में सुबह तारों की छाँव में व्रत रखते हैं और शाम को चाँद देखकर व्रत खोलते हैं, यह वास्तव में प्रतीक है एक ऐसे फ़ासले का जो हमें आध्यात्मिकता की एक मंज़िल से दूसरी मंज़िल तक ले जाता है। यह जो व्रत है करवा चौथ का यह तारों से लेकर चाँद तक, आत्मा और परमात्मा के मिलन की एक अवस्था का वर्णन है।

यह व्रत तभी मुबारिक है जबकि हम सुबह अपने अंतर में तारें देखें। सारा दिन प्रभु की याद में व्यतीत करें, ध्यान-अभ्यास में व्यतीत करें और शाम को अपने अंतर में चाँद देखें और फिर अपना महबूब देखें जो हमारे दिल का चाँद है। जो हमारा गुरु है उनके दर्शन करें तो यही तरीका है करवा चौथ मनाने का।

अब क्या होता है कि हमारी माताएं, विवाहित बेटियां तथा बहनें व्रत रखती हैं। मगर दिन का समय प्रभु की याद में कौन गुजारता है? हम यही करते हैं कि सुबह उठे, व्रत रखा और फिर आपस में सहेलियों, रिश्तेदारों से गप्पे हांकी, एक-दूसरे से नांक-झोंक की, दिन के समय सिनेमा देखा या घर में बैठकर टेलिविज़न देखा। मगर असली मकसद था इस व्रत का कि

सारा दिन प्रभु की याद में व्यतीत किया जाए, ध्यान-अभ्यास में समय व्यतीत किया जाए। इस पर हम अमल नहीं करते। हमें तो एक बहाना मिल जाता है कि हम नए-नए आभूषण प्राप्त करें और शाम को एक रस्म द्वारा व्रत खोल लिया और हम समझते हैं कि हमें एक लाईसेंस मिल गया कि एक वर्ष के लिए हमारे पति का स्वास्थ्य ठीक रहे और उसके कारोबार में तरक्की होती रहे। इस तरह जो असली मकसद है इस त्यौहार का उसे हम भूल जाते हैं।

Rajsthan Election : AAP उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट जारी, जानें कौन-कौन हैं उम्मीदवार

हमें चाहिए कि हम सारा दिन सिनेमा में, टेलिविज़न में ही बर्बाद न करें। हम सुबह ध्यान-अभ्यास पर बैठें। सारा दिन प्रभु की याद में व्यतीत करें और शाम को अपने गुरु की दयामेहर से अंतर में चाँद देखें और फिर उनके नूरानी रूप के हम दर्शन करें। यह जो बाहर का चाँद है, यह तो हर रात को दिखाई भी नहीं देता। परन्तु जो अंदर का चाँद है, उसे हम हर समय देख सकते हैं। वही वास्तविक चन्द्रमा है। अंतर के चाँद को देखने से ही हम करवा-चौथ के व्रत का वास्तविक लाभ उठा पायेंगे।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button