Editorial : सुलगता हुआ सवाल?
Editorial: A burning question?

Editorial : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने गत 8 अप्रैल 2025 को दिए गए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर दर्जनाधिक नीतिगत सवाल उठाए हैं क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले में आदेश दिया था कि राज्यपालों और राष्ट्रपति को एक तय समय में उनके समक्ष पेश विधेयकों पर फैसला लेना होगा।
राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से राज्यपाल की शक्तियों, न्यायिक दखल और समयसीमा तय करने जैसे विषयों पर स्पष्टीकरण मांगा है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले में दिए अपने फैसले में स्पष्ट कहा था कि राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है। राज्यपाल की ओर से भेजे गए विधेयक पर राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर फैसला लेना होगा।
अगर तय समयसीमा में फैसला नहीं लिया जाता तो राष्ट्रपति को राज्य को इसकी वाजिब वजह बतानी होगी। देश में विधायिका-कार्यपालिका बनाम न्यायपालिका का टकराव अब कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की ओर से तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा विधेयक पर फैसला लेने की समयसीमा तय किए जाने पर पहले तो उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा कोर्ट के फैसले पर आपत्ति जताई गई।
समयसीमा तय किए जाने पर राष्ट्रपति ने सवाल उठाते हुए दो टूक शब्दों में कहा है कि संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है! इसलिए सुलगता हुआ सवाल है कि जब कोई प्रावधान ही नहीं है तब इतना बड़ा न्यायिक अतिरेक कैसे सामने आया जिससे भारत की कार्यपालिका और विधायिका में भूचाल आ गया।
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति के फैसले की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। अगर राज्यपाल ने मंत्रिपरिषद की सलाह के खिलाफ जाकर फैसला लिया है तो सुप्रीम कोर्ट के पास उस विधेयक को कानूनी रूप से जांचने का अधिकार होगा। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर काफी हंगामा हुआ था, जो अब भी विभागीय शीत युद्ध के रूप में जारी है।
Editorial : भारत की प्रखर एवं प्रभावी नीति
इसी का परिणाम है कि अब राष्ट्रपति ने इस पर आपत्ति जताई है और साफ साफ कहा है कि जब देश के संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, तो फिर सुप्रीम कोर्ट किस आधार पर यह फैसला दे सकता है।