Editorial : मानवतावादी संत
Editorial : Humanist Saint

Editorial : संत रविदास जयंती प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है और यह दिन उनके विचारों और शिक्षाओं को याद करने तथा उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलने की प्रेरणा देने का अवसर होता है। मानवता और भाईचारे की सीख देने वाले कवि रविदास ने जीवन पर्यन्त छुआछूत जैसी कुरीतियों का विरोध करते हुए समाज में फैली तमाम बुराईयों के खिलाफ पुरजोर आवाज उठाई और उन कुरीतियों के खिलाफ निरन्तर कार्य करते रहे।
गुरू रविदास जी ऐसे प्रगतिशील साधक और क्रांतिकारी व्यक्ति थे, जिन्होंने मोक्ष के लिए गुफा में समाधि नहीं लगाई अपितु, एक अच्छे संत की तरह ऋग्वेद के अनुसार हे मानव तू मानव बन, तू केवल स्वयं आदर्श मानव मत बन, बल्कि अपनी संतान को भी इन गुणों से युक्त बना, इस उक्ति को चरितार्थ करने के लिए गुरु रविदास जी ने मानव कल्याण के लिए कार्य किया।
15वीं सदी के महान् समाज सुधारक संत रविदास का जन्म वाराणसी के गोवर्धनपुर में माघ पूर्णिमा के दिन हुआ था। इसीलिए हर वर्ष माघ पूर्णिमा के दिन रविदास जयंती मनाई जाती है। गुरु रविदास जी ने अपने समय में धर्म के माध्यम से समाज सुधार का महत्वपूर्ण कार्य किया। उन्होंने भारतीय समाज के समक्ष सामाजिक समता तथा धर्म व भक्ति के क्षेत्र में प्रत्येक व्यक्ति के समान अधिकार की बात कह कर नये चिन्तन का सूत्रपात किया।
संत रविदास को लेकर ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ कहावत बहुत प्रचलित है। इस कहावत का संबंध संत रविदास की महिमा को परिलक्षित करता है। संत रविदास जूते बनाने का कार्य किया करते थे और इस कार्य से उन्हें जो भी कमाई होती, उससे वे संतों की सेवा किया करते और उसके बाद जो कुछ बचता, उसी से परिवार का निर्वाह करते थे।
संत रविदास केवल एक संत नहीं, बल्कि समाज सुधारक, कवि और विचारक थे। उनकी शिक्षाएं जातिवाद और भेदभाव के विरुद्ध एक सशक्त संदेश देती हैं। आज, जब हमारा समाज समरसता की ओर बढ़ रहा है, तब संत रविदास के विचार हमें प्रेरणा देते हैं कि हम भी उनके दिखाए मार्ग पर चलें और एक न्यायसंगत, समानता आधारित समाज की स्थापना में योगदान दें।