Editorial : हार कर भी जीत गई विनेश फोगाट
Editorial: Vinesh Phogat won even after losing
Editorial : विनेश फोगाट ने राष्ट्रमंडल खेलों से लेकर ओल्मपिक खेलों तक का सफर जिस तरह से पूरा किया है वो सराहनीय है। विनेश जिन परिस्थितियों से जूझकर यहां तक पहुंची है वो दुनिया के हार खिलाडी के लिए प्रेरणास्पद है। सरकार को स्कूली पाठ्यक्रमों में दीगर विषयों को पढ़ाये जाने की जिद छोड़कर विनेश की जीवनी पढ़ने की व्यवस्था करना चाहिए। पेरिस ओलम्पिक से बाहर की गयी विनेश का कैरियर इस रोक के बाद समाप्त नहीं हो जाता।
विनेश के लिए ये घटना एक दु:स्वप्न से कम नहीं है, लेकिन उसे इसे भुलाना ही होगा। ऐसा करना आसान काम नहीं है क्योंकि विनेश जिस मुकाम पर आकर टूटी है वहां आकर कोई भी पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहता। विनेश फोगाट हमारे किये एक आदर्श भी है और एक सबक भी। हमें उसे टूटने से बचना होगा। ये सरकार की भी जिम्मेदारी है और समाज की भी। समाज विनेश के साथ पहले से खड़ा है।
सरकार को उसके साथ खड़ा होना है और ओलम्पिक समिति के साथ निर्णायक लड़ाई लड़ना है। सरकार उसे देश का कोई भी सर्वोच्च नागरिक सम्मान देकर उसके घाव भर सकती है, लेकिन दुर्भाग्य ये कि जब विनेश अपने जीवन की सबसे बुरी घड़ियों से गुजर रही है तब सरकार की और से संसद में बतया जाता है कि सरकार ने विनेश को तैयार करने पर कितना खर्च किया।
विनेश 30 साल की उम्र में राष्ट्रमंडल खेलों से लेकर ओल्मपिक खेलों तक का सफर जिस तरह से पूरा किया है वो सराहनीय है। इस समय जरूरत इस बात की है कि देश की वो ही सरकार विनेश के लिए लड़े जिसने कुछ महीनों पहले अपनी पार्टी के सांसद के जरिये विनेश और विनेश के साथ देश की पूरी पहलवान बिरादरी को सड़कों पर अपमानित किया था। विनेश उस मान-मर्दन की पीड़ा को भूलकर ओलम्पिक खेलों में शामिल हुई थी। उसने पहली दो प्रतियोगिताएं जीतकर भी दिखाई थीं। विनेश फाइनल में भी जीतती लेकिन उसे जीतने नहीं दिया गया।