Editorial : नेपाल में सियासी उठापटक तेज
Editorial: Political turmoil intensifies in Nepal
भारत के अहम पड़ोसी मुल्क नेपाल में उठी सियासी उठापटक की करें तो भारत के अहम पड़ोसी नेपाल में सियासी उठापटक तेज़ हो गई है। यहां राजनीतिक समीकरण बदलने से मौजूदा प्रधानमंत्री पुष्प कमल दाहाल प्रचंड की कुर्सी ख़तरे में पड़ गई है। प्रचंड ने कहा है कि वो पद से इस्तीफ़ा नहीं देंगे बल्कि संसद में विश्वासमत का सामना करेंगे। कम्युनिस्ट पार्टी के उप महासचिव ने कहा है कि नेपाली कांग्रेस से समझौते के कारण यह सब हो रहा है।
उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री नेपाली कांग्रेस से एक महीने से राष्ट्रीय एकजुटता की सरकार बनाने के लिए बात कर रहे थे। इसी वजह से अविश्वास का माहौल बना। प्रचंड की सरकार पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी के समर्थन से चल रही थी। ओली की कम्युनिस्ट पार्टी का गठबंधन अब नेपाली कांग्रेस के साथ हो गया है। नेपाल ने मई 2020 में अपना आधिकारिक नक्शा जारी किया, जिसमें लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा इलाक़ों को नेपाल की पश्चिमी सीमा के भीतर दिखाया है।
नेपाल की प्रतिनिधि सभा जिसमें कि कुल 275 सीटें हैं उसमें नेपाली कांग्रेस के 89 सीट है जबकिसीपीएन, यूएमएल के पास 78 सीट है, ये दोनों मिला कर 167 होते हैं जबकि बहुमत के लिए महज़ 138 सीट चाहिए। दोनों पार्टियों के बीच हुए समझौते की अब तक जो जानकारी सामने आयी है उसके मुताबिक़ दोनों नई सरकार तो बनाएंगे ही, चुनाव प्रक्रिया में सुधार और संविधान में संशोधन भी करेंगे। नेपाली कांग्रेस का ज़ोर कूटनीतिक रास्तों के ज़रिए समस्या का समाधान ढूंढने पर होता है। नेपाली कांग्रेस संतुलित और तटस्थ नज़रिया रखते हुए काम करने को कह सकती है, ऐसे में दोनों के रिश्तों में अधिक बदलाव नहीं आना चाहिए।
नेपाल में पिछले 13 सालों में 16 सरकारें बन और गिर चुकी हैं. इस तरह भारत के पड़ोसी देश में राजनीतिक अस्थिरता का दौर जारी है। साथ ही पावर शेयरिंग फॉर्मूला यानि कि सत्ता में जिस तरह की भागीदारी हो इसका रोडमैप तैयार करेंगे। देऊबा और ओली डेढ़-डेढ़ साल के लिए पीएम बनेंगे पीएम का पद पहले ओली संभालेंगेसकते हैं।