सियासत का कारोबार और कारोबार की सियासत

The business of politics and the politics of business
The business of politics and the politics of business

विश्वजीत शेखर राय

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Uttar Pradesh Chief Minister Yogi Adityanath) के मुंबई में उद्योगपतियों और सिनेमा जगत के दिग्गजों से मुलाकात की खबरें आजकल चर्चा का केन्द्र बनी हुईं हैं। जनसंख्या के दृष्टि से उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है एवं लोकसभा की सर्वाधिक अस्सी सीटे होने के कारण देश की राजनीति में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह इसकी महत्ता ही है कि 2014 में नरेन्द्र मोदी को उत्तर प्रदेश की वाराणसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ना पड़ा। इतने महत्वपूर्ण सूबे में भाजपा पिछले दो विधानसभा चुनावों में पूर्ण बहुमत से चुनाव जीती है और योगी आदित्यनाथ पर भरोसा जताते हुए मुख्यमंत्री के रूप में चुना है। उत्तर प्रदेश के साथ अपनी समस्याएं रही है। यह एक बड़ा राज्य है और लैंड-लॉक्ड होने के कारण कभी भी व्यापार का गढ़ नहीं रहा है। महाराष्ट्र और गुजरात की तरह यहाँ व्यापार की संभावनाएं कभी विकसित नहीं हुईं। बैंगलोर, हैदराबाद और पुणे जैसे आईटी शहर भी यहाँ के राजनेता विकसित नहीं कर पाएं। गंगा-यमुना के क्षेत्र और हिमालय के तराई क्षेत्र में अवस्थित इस सूबे को कृषि प्रधान ही कहा जाता है लेकिन यहाँ के किसानों की स्थिति पंजाब और हरियाणा के किसानों जैसी नहीं है। इन सभी समस्याओं के साथ इस क्षेत्र में व्यापारों के विस्तार में कानून और न्याय व्यवस्था भी एक बाधा की तरह रही है। यह सभी समस्याएं किसी भी सूबे में कारोबारियों की रुचि और निवेश को प्रभावित करती है।

पहले बात करते है सियासत के कारोबार की, पिछले अनेक मुख्यमंत्रियों की तरह ही योगी आदित्यनाथ को भी यही पिछड़ा उत्तर प्रदेश विरासत में मिला। उत्तर प्रदेश में ‘लॉ एंड आर्डर’ ठीक रखने वाले मुख्यमंत्रियों को ही मजबूत माना गया है क्यूंकि विकास यहाँ कभी सफलता और मजबूती का पैमाना बन ही नहीं पाया। योगी ने भी अपने आप को मजबूत दिखने और प्रशासन पर अपना कण्ट्रोल स्थापित करना अपनी प्राथमिकता समझी और यह जरुरी भी थी क्यूंकि योगी आदित्यनाथ के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी चक्रव्यूह में थी। हर स्तर पर पर उनके सम्मुख अलग-अलग चुनौतियां थी। गोरखपुर में शिवप्रताप शुक्ल को केंद्रीय मंत्री बनाकर उनकी अपनी पार्टी ने गोरखपुर में उनके एकाधिकार को चैलेन्ज किया। तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्या ओबीसी के कद्दावर नेता बन चुके थे और लखनऊ की कुर्सी के दावेदार के रूप में भी कुछ लोग उन्हें देख रहे थे। राष्ट्रीय फलक पर भाजपा के अन्य मुख्यमंत्रियों में देवेंद्र फडणवीस जैसे युवा और बड़े राज्य के मुख्यमंत्री से लेकर शिवराज सिंह चौहान जैसे अनुभवी मुख्यमंत्री के समक्ष अपनी पहचान बनानी थी। अपने पहले कार्यकाल में योगी आदित्यनाथ इन सब बाधाओं को अपनी सियासी समझ बुझ से पार कर चुके है।

2014 के बाद भारत की राजनीति में आंकड़ों और व्यापार का गणित महत्वपूर्ण हो गया है। इसलिए इस कार्यकाल में योगी उत्तर प्रदेश में औद्योगिक विकास और व्यापार की संभावनाओं को तलाश रहे है। वह जानते है कि देश को अगर उत्तर प्रदेश मॉडल दिखाई देने लगा तो उनकी दिल्ली कि राह आसान हो जाएगी। ‘लॉ एंड आर्डर’ और एक्सप्रेस वे का नेटवर्क तभी सार्थक हो पायेगा जब उत्तर प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्रों में ‘निवेश’ कि ऊर्जा से ‘कारोबार’ का बल्ब प्रकाशित हो। यह कारोबार की सियासत भी आसान नहीं है लेकिन देखना होगा कि मुख्यमंत्री की इस कसरत का ‘उत्तर प्रदेश ग्लोबल इन्वेस्टर समिट’ में कितना प्रभाव पड़ता है और सूबे में कारोबार की दशा कितनी बदलती है। इस सियासत के ही बहाने दशकों बाद उत्तर प्रदेश में उद्योगों की वापसी की उम्मीद जग रही है यह महत्वपूर्ण है।

अगर हम अगले महीने होने वाले ‘उत्तर प्रदेश ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट’ की बात करे तो इससे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा निर्धारित 17 ट्रिलियन रुपये के निवेश का लक्ष्य रखा गया है। कहा जा रहा है कि प्रदेश ने चार सप्ताह पहले ही प्रस्तावित निवेश लक्ष्य का 70 प्रतिशत हासिल कर लिया है। अब तक घरेलू और अंतरराष्ट्रीय निवेशकों से 12 ट्रिलियन रुपये के निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं। 16 देशों से 7 ट्रिलियन रुपये के वैश्विक निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए, जबकि योगी की मुंबई यात्रा के दौरान लगभग 5 ट्रिलियन रुपये के घरेलू निवेश प्रस्ताव प्राप्त है।

(लेखक एक स्तंभकार है)

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