पुलवामा हमला : भारत ने 3 नदियों के पानी को पाक जाने से रोकने का लिया फैसला, यह पानी कश्मीर पंजाब को मिलेगा
आर के,राय
रावी, ब्यास और सतलुज में बहने वाले भारत के हिस्से के पानी को पाक जाने से रोका जाएगा
केंद्रीय मंत्री गडकरी ने कहा- तीनों नदियों का पानी रोकने के लिए बांध बनेंगे, काम शुरू
पुलवामा हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान की ओर जाने वाली तीन नदियों के अपने हिस्से का पानी रोकने का फैसला किया है। भारत-पाकिस्तान के बीच 19 सितंबर 1960 को सिंधु जल समझौता हुआ था। इसके तहत रावी, ब्यास और सतलुज पर भारत और झेलम, चिनाब और सिंधु नदियों के पानी के इस्तेमाल पर पाकिस्तान का हक है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने गुरुवार को कहा कि बांध बनाकर तीन नदियों का पानी रोकेगा। यह पानी जम्मू-कश्मीर और पंजाब में डायवर्ट किया जाएगा। केंद्रीय मंत्री यहां बालैनी स्थित मेरठ बाईपास से हरियाणा बॉर्डर तक डबल लेन हाईवे और बागपत में यमुना के वाटर ट्रीटमेंट प्लांट का शिलान्यास करने आए थे। गडकरी ने कहा, तीनों नदियों के पानी को यमुना में भी लाया जाएगा। रावी नदी पर शाहपुर-कांदी बांध बनाने का काम शुरू हो चुका है।
आतंकी हमले के बाद भारत का तीसरा फैसला
पुलवामा हमले के बाद भारत का पाकिस्तान के खिलाफ यह तीसरा बड़ा फैसला है। इसके पहले सरकार ने पाकिस्तान से मोस्ट फेवर्ड नेशन (एमएफएन) का दर्जा छीन लिया था। फिर वहां से आने वाले सामान पर ड्यूटी 200% तक बढ़ा दी थी।
अभी अपने हिस्से का 20% पानी भी पूरा इस्तेमाल नहीं कर पाता भारत
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, रावी, सतलुज, ब्यास, सिंधु, चिनाब और झेलम नदियों का 80 फीसदी पानी पाकिस्तान में चला जाता है। वहीं, भारत अपने हिस्से का 20 फीसदी हिस्सा भी ठीक से इस्तेमाल नहीं कर पाता है। सरकार का यह कदम इस हिस्से के ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल की ओर है।
सिंधु जल संधि 59 साल पुरानी
भारत और पाकिस्तान के बीच 19 सितंबर 1960 को सिंधु जल संधि हुई थी। भारत की ओर से प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने इस पर हस्ताक्षर किए थे। दोनों देशों के बीच यह संधि विश्व बैंक के हस्तक्षेप से हुई थी। इसके तहत सिंधु नदी घाटी की 6 नदियों को पूर्वी और पश्चिमी दो हिस्सों में बांटा गया। इसके मुताबिक, रावी, ब्यास और सतलुज पर पूरी तरह से भारत और झेलम, चिनाब और सिंधु पर पाकिस्तान का हक है।
समझौते के तहत भारत को बिजली बनाने और कृषि कार्यों के लिए पश्चिमी नदियों के पानी के इस्तेमाल के भी कुछ सीमित अधिकार हैं। दोनों पक्षों के बीच विवाद होने और आपसी विचार-विमर्श के बाद भी इसका निपटारा नहीं होने की स्थिति में किसी तटस्थ विशेषज्ञ की मदद लेने या कोर्ट ऑफ ऑर्बिट्रेशन में जाने का प्रावधान है।