थोड़ी सी जीवनशैली बदले और आर्थराइटिस से बचें

डा.संजय अग्रवाला
हेड, आर्थोपेडिक्स
पी.डी.हिंदुजा नेशनल अस्पताल,मुबंई
उम्र बढऩे के साथ ही लोग जोड़ों के दर्द से परेशान होने लगते हैं। बहुत से उपाय करने के बाद भी दर्द से निजात पाना मुश्किल होता है। आमतौर पर वे आर्थराइटिस से पीडि़त होते हैं, जिसे आमतौर पर गठिया भी कहा जाता है। भारत में लगभग 15 प्रतिशत लोग आर्थराइटिस से पीडि़त हैं और इसकी बढ़ती संख्या एक चिंता का विषय बनता जा रहा है। वैसे तो आम धारणा में आर्थराइटिस को वृद्घावस्था की बीमारी समझा जाता है, लेकिन कई मरीजों में ये बीस या तीस की ही उम्र में भी उत्पन्न हो सकती है। 45 व 50 वर्षीय लोग अब अधिक मात्रा में इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। आज लगभग 18 से 20 करोड़ भारतीय ओस्टियोआर्थराइटिस से पीडि़त हैं। यह आर्थराइटिस का बहुत ही साधारण रूप है, जो बीमारी को बढ़ाने का एक प्रमुख कारण भी है।
यूं तो आर्थराइटिस होने के कारण बहुत स्पष्टï नहीं है, फिर भी निम्रलिखित कारणों को इसके लिए जिम्मेदार माना जा सकता है। जैसे:-जोड़ों में चोट लगना, जॉगिंग, टेनिस व स्कीइंग के दौरान अधिक सक्रियता। शरीर का भारीपन। अधिक वजन बढऩा। मेनोपॉज एस्ट्रोजन की कमी (महिलाओं में), विटामिन डी की कमी। हमारी आरामदायक जीवनशैली, धूम्रपान, शराब, जंक फूड, व्यायाम की कमी, कंप्यूटर के काम आदि से भी ये बीमारी हमें अपनी चपेट में ले सकती है।
कार्टिलेज के अंदर तरल व लचीला उत्तक होता है, जिससे जोड़ों में संचालन हो पाता है और जिसकी वजह से घर्षण में कमी आती है। हड्डïी के अंतिम सिरे में शॅार्क अब्जार्बर लगा होता है, जिससे फिसलन संभव हो पाता है। जब कार्टिलेज(उपास्थि) में रासायनिक परिवर्तन के कारण उचित संचालन नहीं हो पाता है, तब ऑस्टियोआर्थराइटिस की स्थिति हो जाती है। जोड़ों में संक्रमण के चलते कार्टिलेज के अंदर रासायनिक परिवर्तन के कारण ही आर्थराइटिस होता है। यह तब होता है, जब हड्डिïयों का आपस में घर्षण ज्यादा होता है।
आर्थराइटिस से पीडि़त लोग अपने बदन में दर्द और अकडऩ महसूस करते हैं। कभी-कभी उनके हाथों, कंधों व घुटनों में भी दर्द व सूजन रहती है। दरअसल शरीर में जोड़ वह जगह होती है, जहां पर दो हड्डियों का मिलन होता है, जैसे-कोहनी व घुटना। आर्थराइटिस के कारण जोड़ों को क्षति पहुंचती है। पर खास तौर से चार तरह के आथ्र्राइटिस ही देखने में आते हैं-1. रयूमेटाइड आर्थइटिस, 2.आस्टियो आर्थाइटिस, 3.गाउटी आर्थाइटिस, 4.जुनेनाइल आर्थाइटिस। आर्थराइटिस फाउंडेशन के अनुसार लगभग, एक करोड़ 60 लाख अमेरिकी नागरिक इस रोग से ग्रस्त हैं, जिसमें से पुरु षों के मुकाबले तीन गुणा अधिक महिला रोगी हंै।
ऑस्टियोआर्थराइटिस सभी आर्थराइटिस में सबसे अधिक पाया जाने वाला रोग है, जो कि 40 वर्ष के ऊपर की आयु वाले लोगों को विशेषकर महिलाओं को प्रभावित करता है। यह रोग आमतौर पर शरीर के सभी वजन सहने वाले जोड़ों विशेषकर घुटनों के जोड़ों को प्रभावित करता है। रोग के बढऩे के साथ-साथ रोगी की टांगों का टेढ़ापन तथा घुटनों के बीच की दूरी बढऩे लगती हैं। सीढिय़ां चढऩे-उतरने तथा अधिक दूर चलने में दर्द होता है। अधिकतर लोगों में यह मिथ्या धारणा है कि आर्थराइटिस में केवल जोड़ों में दर्द होता है। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी आने के कारण होने वाले रयूमेटोइड आर्थराइटिस में जोड़ों के अलावा दूसरे अंग तथा सम्पूर्ण शारीरिक प्रणाली प्रभावित होती है। यह रोग 25 से 35 वर्ष की आयु के लोगों को प्रभावित करता है, जिनमें मुख्य लक्षण हाथ-पैरों के छोटे जोड़ों में दर्द, कमजोरी तथा टेढ़ा-मेढ़ापन, मांसपेशियों में कमजोरी, ज्वर, अवसाद उभर जाते हैं। इसके अलावा गुर्दो व जिगर की खराबी भी हो सकती है।
कसरत को अपने नियमित दिनचर्या में शामिल करें। इससे आप के जोड़ों को कुछ राहत मिलती है। लेकिन अगर आप को शरीर में दर्द है, तो उस समय व्यायाम न करें। अपनी दवा की नियति खुराक लेते रहें। इससे आप को दर्द व अकडऩ में आराम मिलेगा। सुबह गरम पानी से नहाएं। खानपान पर विशेष ध्यान देना चाहिए। दर्द घटाने के बाम या क्रीम का इस्तेमाल बार बार न करें। इनसे पैदा हुई गर्मी से राहत तो मिलती है, परंतु ये बाद में नुकसान पहुंचाते हैं। जोड़ों में दर्द के समय या बाद में गरम पानी के टब में कसरत करें या गरम पानी के शावर के नीचे बैठें।

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