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प्रख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन ने एक बार कहा था कि,आने वाली पीढ़ियों को यह यकीन ही नहीं होगा कि महात्मा गांधी जैसा भी कोई व्यक्ति इस धरती पर आया था।मुझे लगता है उनका यह कहना बिल्कुल भी गलत नहीं था, क्योंकि वर्तमान भारतीय सामाजिक और राष्ट्रीय परिवेश में जिस तरह से गांधी को नकारने वालों का एक समूह सा बना हुआ है, जो अपनी तथाकथित नैतिक परिसीमाओं में गांधी के नैतिक मूल्यों मूल्यांकन करते हुए गांधी दर्शन पर प्रश्नचिन्ह लगाने में कोई संकोच नहीं करता है। लेकिन नि:संदेह ऐसे लोग भी हैं, जो आज भी गांधी दर्शन की प्रासंगिकता को स्वीकारते हुए उनमें अभिनव प्रयोगों की गुंजाईश ढूंढ़ते रहते हैं। महात्मा गांधी के आदर्शों, विश्वासों एवं दर्शन से उदभूत विचारों के संग्रह को समग्र रुप से गांधी दर्शन कहा जाता है। गांधी ने किसी नवीन दर्शन की रचना नहीं की थी, वरन् उनके विचारों का जो दार्शनिक आधार है, वही गांधी दर्शन है। गांधी दर्शन की अवधारणा कोई व्यवस्थित शास्त्रीय अध्ययन पद्धति नहीं है, बल्कि इसका आधार गांधी की स्वानुभूति ही अधिक है। अत: गांधी दर्शन वास्तव में महात्मा गांधी द्वारा प्रायोगिकतौर पर अनुभूत समस्त सृष्टि के विकास और इतिहासबोध पर आधारित एक प्रकार से जीवन, मानव समाज और जगत का नैतिक भाष्य है। या यूं कहें कि गांधी दर्शन महात्मा गांधी की समग्र विचार पद्धति का व्यापक स्वरुप है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि गांधी दर्शन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व सत्य रहा है। गांधी ने निरपेक्ष सत्य को ईश्वर के साथ समीकृत किया है। गांधी दर्शन के अनुसार सत्य ही ईश्वर का दूसरा नाम है। पूर्ण सत्य में ब्रह्माण्ड का समग्र ज्ञान समाहित हैं, जो शाश्वत आनंद का स्त्रोत है। अत: ईश्वर को सच्चिदानंद कहा गया है। गांधी का विचार था कि परिशुद्ध सत्य की ओर अग्रसर होने के लिए प्रत्येक मनुष्य को अपनी अंतरात्मा की आवाज को सुनना और समझना होगा, तभी वह जीवन के शुद्ध और पूर्ण शाश्वत सत्य स्वरुप को अनुभूत कर सकेगा। गांधी सत्य को सर्वश्रेष्ठ धर्म और अहिंसा को परम कर्तव्य मानते थे। अत: गांधी दर्शन का दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष अहिंसा है। अहिंसा का सामान्य अर्थ है कि हिंसा न करना। वहीं व्यापक अर्थों में अहिंसा किसी भी प्राणी को तन, मन, कर्म, वचन और वाणी से कोई नुकसान न पहुंचाने की अवधारणा है। गांधी के अनुसार सत्य की तरह अहिंसा भी सर्वशक्तिमान और असीम है तथा ईश्वर के समानार्थी है। गांधी ने अपनी पुस्तक ‘युद्ध और अहिंसा’ में अहिंसा को सक्रिय शक्ति और सार्वभौम नियम के रूप में दर्शाया है। उनके ही शब्दों में, यदि मैं अपने विरोधी पर प्रहार करता हूँ, तो मैं हिंसा करता ही हूं। पर अगर मैं सच्चा अहिंसक हूं, तो जब वह मेरे ऊपर प्रहार कर रहा हो तब भी मुझे उस पर प्रेम करना है और उसका कल्याण चाहना है, उसके लिए ईश्वर से प्रार्थना करनी है। वे अपने एक वक्तव्य में स्पष्ट करते हैं कि मेरे पास दुनियावालों को सिखाने के लिए कुछ भी नया नहीं है। सत्य एवं अहिंसा तो दुनिया में उतने ही पुराने हैं जितने हमारे पर्वत हैं। सत्य और अहिंसा के बाद गांधी दर्शन में राष्ट्रीय चेतना, स्वच्छता, सत्याग्रह, सर्वोदय, विश्वबंधुत्व, शांति, समर्पण, सर्वधर्म समभाव, मानवता जैसे अनेक आदर्श समाहित हैं। गांधी दर्शन का प्रभाव केवल राजनितिक क्षेत्र तक ही सीमित नहीं रहा है, वरन् इससे सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्र भी अछूते नहीं रह पाए हैं। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आम लोगों से लेकर विद्वजनों तक ने अपने चिंतन और सृजन में गांधी दर्शन को सम्मान प्रदान करते हुए भारत में स्वातन्र्त्य, समता तथा विश्वबंधुत्व की भावना को अधिक प्रखरता से स्थापित होने दिया है। वर्तमान वैश्विक आतंकवाद हो या फिर इस दौर की सबसे क्रूरतम कोरोना महामारी ही क्यों न हो, इनकी चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में गांधी दर्शन की प्रासंगिकता उनके अपने दौर से कहीं अधिक आवश्यक अनुभव की जा रही है। कोरोनाकाल की संक्रमण परिस्थितियों में स्वच्छता की मांग हो या विश्वबंधुत्व की भावना के साथ इस संकटकाल से उबरने की चेतना हो, अथवा दशकों से आतंकवाद की निर्ममता और साम्प्रदायिकता के विद्वेष के दबाव की चुनौतियां सामने हों, इनके स्थायी निदान के लिए गांधी दर्शन से उत्तम कोई समाधान दिखाई नहीं पड़ता।विश्व में स्थायी शांति और समाज कल्याण आज सिर्फ गांधी दर्शन के दो मूल स्तम्भों सत्य और अहिंसा के द्वारा ही संभव है। हांलाकि वैश्विक स्तर पर व्याप्त हिंसा, मतभेद, साम्प्रदायिकता, असमानता, बेरोजगारी, महँगाई तथा तनावपूर्ण माहौल में गांधी के सत्य व अहिंसा पर आधारित दर्शन और विचारों के लिए आधुनिक परिस्थितियों के तदनुसार अभिनव प्रयोग अपेक्षित हैं।

गांधी युग वर्तमान अत्याधुनिक तकनीकी युग से बिल्कुल भिन्न था, समानता सिर्फ यह कही जा सकती है कि उस समय भी गांधी प्रयोगों में विश्वास रखते थे। प्रयोग चाहे वैज्ञानिक हों या गांधी की तरह अपनाए जाने वाले दैनिक जीवन से लेकर सामाजिक चेतना जागृति वाले हों, हर प्रयोग का वैज्ञानिक दृष्टिकोण होता है, जो उसकी व्यावहारिक सफलता की प्रतिश्रुति निर्धारित करता है। गांधी को बेहद प्रयोगधर्मी व्यक्ति माना जाता है, लेकिन उनके प्रयोग केवल बौद्धिक स्तर तक सीमित नहीं होते थे, बल्कि अपने हर प्रयोग को उन्होंने जीवन में उतनी ही निष्ठा के साथ जिया भी था।

वर्तमान आतंकवाद, वैश्विक महामारियां, साम्प्रदायिकता, व्यभिचार, भ्रष्टाचार, आर्थिक तंगी, गरीबी, असमानताएं, अशिक्षा, सामाजिक कुरीतियां आदि कई वे मुद्दे आज भी उतने ही ज्वलंत मुद्दों के रुप में विद्यमान हैं, जितने गांधीयुग में थे। यह अवश्य है कि ये सभी विषय आधुनिकता के रैपर में लिपटकर नए स्वरुप में विश्व समाज के सामने प्रकट हुए हैं। अत: इनका सामना करने और हर संभव इनके उन्मूलन के लिए गांधी दर्शन के उन सिद्धांतों का अभिनव रुप में प्रयोग एक सार्थक पहल साबित हो सकती है। गांधी ने अपने युग में इन तत्कालीन मुद्दों से निपटने के लिए अपने विचारों और दर्शन से साथ ही विभिन्न संस्थाओं और सभाओं की स्थापनाओं से जन-जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सुधार करना चाहा था। उन्होंने निश्चेष्ट, निराश एवं निरवलम्ब जनता को अपने उच्च विचारों का दान तथा नवचेतना प्रदान कर, उनके मौलिक अधिकारों के प्रति चेतना जगाने का सफल प्रयास किया था। गांधी दर्शन ने भारतीय सांस्कृतिक जीवन-दर्शन का स्वाभाविक विकास द्वारा भारतीय जीवन-दर्शन तथा आध्यात्मिकता को राष्ट्रीय आन्दोलन का सम्बल बनाकर जन-आन्दोलन का रूप दिया था। वर्तमान परिपेक्ष्य की विसंगतियों से मुक्त होने के लिए गांधी चिंतन और दर्शन में आधुनिक आवश्यक परिवर्तन करने की दिशा में देश के सृजनकर्मियों और संवेदनशील बुद्धिजीवियों की सजगता अपेक्षणीय है।

आज के वैश्विक परिवर्तन में सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए बातचीत के माध्यम से विश्व समस्याओं का समाधान तलाशने के लिए गांधी दर्शन के अभिनव प्रयोगों के उद्देश्य एवं लक्ष्य निर्धारित करने होंगे। आज के चहुं ओर हिंसा व आतंकवाद के विश्वव्यापी दौर में गांधी दर्शन के आदर्शों पर चलना बेहद प्रासंगिक लगने लगा है। वर्तमान में गांधी दर्शन की सार्थकता की संभावना को बीसवीं शताब्दी के कुछ प्रभावशाली नेताओं के अभिनव सफल प्रयोग बल प्रदान करते हैं। निश्चित तौर पर उन लोगों में नेल्सन मंडेला, दलाई लामा, मिखाइल गोर्बाचोव, अल्बर्ट श्वाइत्ज़र, मदर टेरेसा, मार्टिन लूथर किंग (जूनियर), आंग सान सू की, पोलैंड के लेख वालेसा, बराक ओबामा, आदि शामिल हैं, जिन्होंने गांधी दर्शन के अभिनव प्रयोगों के माध्यम से सिर्फ अहिंसा के बल पर अपने-अपने क्षेत्रों और देशों में नूतन परिवर्तनों को जन्म दिया।

ये विश्व परिवर्तन गांधीदर्शन के उन अभिनव प्रयोगों की सफलता के सशक्त प्रमाण प्रस्तुत करते हैं, जो भारत के बाहर भी अहिंसा को माध्यम बनाकर अन्याय के विरुद्ध प्रयुक्त किए गए थे और विजय भी प्राप्त हुई थी। इन्हीं प्रमाणों को आधार बनाकर वर्तमान परिपेक्ष्य में विश्व और देश में व्याप्त विभिन्न समस्याओं, सामाजिक विसंगतियों और आर्थिक विषमताओं से निजात पाने के लिए लक्ष्य निर्धारित किए जा सकते हैं।

गांधी दर्शन का प्रयोग अभिवन रुपों में स्वच्छता से कोरोना महामारी, सर्वधर्म समभाव से साम्प्रदायिकता, स्वदेशी से आर्थिक विषमता, असमानता, बेरोजगारी और महँगाई, सत्याग्रह से राजनीतिक विसंगति, वहीं शांति, अहिंसा और प्रेम से आतंकवाद और विविध हिंसा प्रवृत्तियों को क्रमश: उद्देश्य और लक्ष्य के रुप में प्रस्तुत किया जा सकता है। वर्तमान में तीसरे विश्वयुद्ध के कगार पर खड़ी दुनिया हो या पाकिस्तान और चीन के साथ युद्ध की आशंकाओं से जूझ रहा भारत हो, दोनों के लिए युद्ध की स्थितियों को टालने या समाप्त करने में गांधी दर्शन की यह शांति प्रसार भावना कुछ अभिनव परिवर्तनों द्वारा कारगर सिद्ध हो सकती है।

भारत ही नहीं बल्कि विश्व के कई देशों में आतंकवाद बेहद खतरनाक मुद्दा बनकर सामने खड़ा है, जो गांधी दर्शन के अहिंसावादी दृष्टिकोण को लहूलुहान कर रहा है। ऐसे में अहिंसा में अभिनव प्रयोग करते हुए उसमें गांधी दर्शन के शांति और नशामुक्ति विचारों को जोड़कर एक सार्थक पहल की तरह उपयोग करने की रणनीति तैयार की जा सकती है। क्योंकि आज आतंकवाद अकेला नहीं है, वरन् उसने अपने साथ संगठित अपराध, गैर-कानूनी वित्तीय अंतरणों और शस्त्र तथा मादक द्रव्यों के अवैध व्यापार जैसे कृत्यों को भी जोड़ लिया है। आतंकवाद का यह वीभत्स स्वरुप कहीं न कहीं हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये गंभीर खतरा बनता जा रहा है। हांलाकि गांधी दर्शन की शक्ति का प्रतिफल ही है कि इतनी अहिंसात्मक आतंकवादी कार्यवाइओं के बावजूद भी भारत जैसा बहु-सांस्कृतिक, उदार और प्रजातांत्रिक देश सत्य और अहिंसा के बल पर आज भी अपने पड़ोसी देश के मंसूबे सफल नहीं होने देता है।

गांधी दर्शन में स्वच्छता पर विशेष ध्यान देने की बात पर बल दिया गया है। इस स्वच्छता में मन की आंतरिक स्वच्छता और बाहरी भौतिक एवं पर्यावरणीय स्वच्छता दोनों समाहित हैं। देश में लगातार बढ़ रहीं बलात्कार, घरेलू हिंसा और यौन उत्पीड़न जैसी घटनाओं से उबरने में गांधी दर्शन की मन:स्वच्छता के विषय में लोगों को जानकारी देने के लिए अभिनव नीतियां बनाई जा सकती हैं। इस अभिनव प्रयोग का मूलाधार गाँधी-दर्शन का वह मूल आध्यात्मिक जीवन-दर्शन बनाया जा सकता है, जो किसी भी युग में या कैसी भी परिस्थितियों में जीवन का सत्य है। इसके लिए मानव में सुप्रवृत्तियों के प्रति अनन्य विश्वास जगाकर अन्याय, अत्याचार तथा शोषण की समस्या का अहिंसात्मक रीति से समाधान मिल सकता है। आज के दौर में पर्यावरण प्रदूषण से गुजर रही दुनिया को स्वच्छ बनाने में भी गांधी दर्शन में समाहित पर्यावरण स्वच्छता के विचारों को अभिनव स्वरुप देकर प्रदूषण निवारण नीतियों के प्रति लोगों को जागरुक किया जा सकता है।

देश के सर्वांगीण विकास के लिए सामाजिक उत्थान को भी गांधी दर्शन में उतना ही महत्व दिया गया है। शराब की खुली बिक्री पर रोक, महिला शिक्षा, अस्पृश्यता की भावना का परित्याग, शिक्षा के सही मायने का प्रचार-प्रसार, मातृभाषा को बढ़ावा देना, सभी को अपने पेशे की ईमानदारी आदि सामाजिक मुद्दे राजनीतिक रणनीति के केन्द्र में व्याप्त थे। एक प्रकार से गाँधी दर्शन में सामाजिक और राजनीतिक विषयों को एक साथ रखा गया है, क्योंकि उसके अनुसार सामाजिक उत्थान की भावना के बिना राजनीति लगभग अर्थहीन है। वर्तमान में राजनीति के सतत् नैतिक पतन को रोकने में गांधीदर्शन के सामाजिक विचारों में आज की परिस्थितियों को ध्यानगत रखते हुए अभिनव बदलाव किए जा सकते हैं, जिससे भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाया जा सकता है।

गांधी भलीभाँति जानते थे कि भारत की वास्तविक आत्मा देश के गांवों में बसती है। अत: जब तक गांव विकसित नहीं होंगे, तब तक देश के वास्तविक विकास की कल्पना करना बेमानी है। गांधी दर्शन में देश के आर्थिक आधार के लिये गांवों को ही तैयार करने की कल्पना की गई है। गांधी का विचार था कि भारी कारखाने स्थापित करने के साथ-साथ दूसरा स्तर भी बचाए रखना ज़रूरी है, जो कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था है। स्वतंत्रता के बाद से गांधी की इन्हीं नीतियों पर अभिनव प्रयोग करते हुए काम किए जाते रहे हैं। इस डिजीटल युग में इंटरनेट जैसी सुविधाओं का गांवों तक पहुंचाना बेहद जरुरी है, इसलिए गांधीदर्शन में सुझाई गईं गावों संबंधी नीतियों में डिजीटल साक्षरता और इंटरनेट के मौलिक आधार को जोड़ने के अभिनव प्रयासों द्वारा गांवों को भी अत्याधुनिक तकनीकों की मुख्यधारा में लाने की समुचित रणनीति तैयार की जा सकती है। इस तरह गांधी दर्शन के सर्वोदय सिद्धांत का उपयोग वर्तमान डिजीटल परिपेक्ष्य को दृष्टिगत रखते हुए देश के सर्वांगीण विकास के लिए किया जा सकता है।
गांधी के आर्थिक-सामाजिक दर्शन में विक्रेंद्रित उत्पादन प्रणाली, उत्पादन के साधनों का विकेंद्रित होना और पूंजी विकेंद्रित होने की बात कही गई है, ताकि समाज जीवन के लिये आवश्यक पदार्थों की उपलब्धि में स्वावलंबी हो और उसे किसी का मुखापेक्षी न बनना पड़े। इसके लिए आज के परिदृश्य में गांधी दर्शन में बहुत अधिक अभिनव प्रयोग की आवश्यकता नजर नहीं आती, बल्कि सीधे सीधे इसे वर्तमान डिजीटल अर्थ प्रणाली में लागू किया जा सकता है।
वर्तमान में यदि हम गांधीदर्शन को आधार बनाते हुए अत्याधुनिकता के तकनीकी दौर में पुन: अभिनव प्रयोग शुरु करते हैं, तो उसके लिए सबसे बड़ा उत्तरदायित्व यह होगा कि मौलिक गांधी दर्शन को न केवल जीवनचर्या का भाग बनाना होगा, अपितु विविध सृजन कर्मों के लिए गांधी की भांति स्वयं को भी पूर्ण समर्पित करना होगा। बस बात यही आती है, कि किसी का गांधी होना इतना आसान नहीं है। नि:संदेह गांधी दर्शन के सिद्धांतों को अपनाकर उनमें अभिनव प्रयोग द्वारा भटक रही दुनिया को सही मार्ग पर ले जाने की दिशा में आशांवित हुआ जा सकता है। हमारे अभिनव प्रयोगों की इस आशा के केंद्र में गांधी की वही सफलता हमारी प्रेरणा बनेगी, जिसे गांधी ने अपने मौलिक अभिनव प्रयोगों द्वारा युगों-युगों से चले आ रहे भारतीय सांस्कृतिक जीवन-दर्शन के प्रमुख तत्त्वों सत्य और अहिंसा को देश हित में प्रयुक्त किया था। कहीं न कहीं गांधी के प्रयोग सफलता की कहानी कहते हैं कि किस तरह तत्कालीन ब्रिटिश-निर्ममता से मुक्त करने के लिए उन्होंने अहिंसा को जीवन-दर्शन का आधार बनाया था।
वर्तमान में गांधी दर्शन पर किए जाने वाले अभिनव प्रयोगों के माध्यम से परिवर्तित समाज आतंकवादियों से लेकर आम व्यक्ति तक के लिए उन संस्कारों का सृजन कर सकेगा, जिससे नूतन संस्कृति का आविर्भाव संभव होगा। नि:संदेह गांधी दर्शन के सत्य, अहिंसा, विश्वबंधुत्व, शांति, समर्पण, सर्वधर्म समभाव, मानवता आदि आदर्शों के अभिनव सिद्धांत विश्व को सत्यम्, शिवम् और सुंदरम् स्वरुप प्रदान करेंगे।

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