मानवता को ”चेतन हो, जुडे़ रहो, देखभाल करो” का संदेश

सावन कृपाल रूहानी मिशन के अध्यक्ष परम संत राजिन्दर सिंह जी महाराज की हीरक जयंती का समारोह अध्यात्म, दिव्य-प्रेम और असीम दयामेहर का उत्सव था, जोकि 20 सितंबर, 2021 को मनाया गया। विश्व-विख्यात आध्यात्मिक गुरु एवं ध्यान-अभ्यास विषय पर आधारित पुस्तकों के सुप्रसिद्ध लेखक संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने कहा कि, ”आज इस बात की आवश्यकता है कि हम अपने आपको अपने असली रूप यानि आत्मिक रूप में जानें और अपने अंतर में पिता-परमेश्वर से जुड़ें।“ अपने ये विचार उन्होंने तीन दिन के विशेष ऑन लाईन कार्यक्रम में कहे, जिसे विश्वभर के लाखों लोग देख रहे थे।

इस शुभ अवसर पर संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने पूरी मानवता के लिए अपना सर्वव्यापी और उभार देने वाला संदेश, ”चेतन हो, जुड़े रहो, देखभाल करो“ दिया। अपने संदेश में उन्होंने कहा कि, ”ध्यान-अभ्यास के द्वारा हम अपने आपको आत्मिक रूप में अनुभव करते हैं जो कि चेतन है और पिता-परमेश्वर का अंश है और एक बार जब हमें यह अनुभव हो जाता है कि हम एक आत्मा हैं तो हमारी यह इच्छा होती है कि हम प्रभु के प्रेम और प्रकाश से जुड़ें। एक बार जब हम अपने अंतर में प्रभु से जुड़ते हैं तो उसके बाद हमें यह अनुभव हो जाता है कि प्रभु सिर्फ मुझमें ही नहीं हैं बल्कि सभी जीवों में है तो फिर हम बड़े प्यार से हरेक की देखभाल करने लग जाते हैं। तो आईये! हम सब प्रभु के इस पथ पर चलने का प्रयास करें, जोकि हमें वापिस प्रभु में जाकर मिला देगा।“ संत राजिन्दर सिंह जी महाराज अपना ये विश्व-कल्याणकारी संदेश लाइल, नैपरविले, अमेरिका से यू-ट्यूब पर दे रहे थे।

इस ऑन लाइन कार्यक्रम की शुरूआत में आदरणीया माता रीटा जी ने गुरुबानी से सिक्खों के पांचवे गुरु, गुरु अर्जन जी महाराज की वाणी से ‘हौऊ वारि वारि जाऊँ गुरु गोपाल“  शब्द का गायन किया। संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने आगे कहा कि, “ध्यान-अभ्यास का असली उद्देश्य यह है कि हम यह जानें कि हम आत्मा हैं। एक बार जब हम अपने आपको आत्मिक रूप से अनुभव करते हैं तो हम अपने अंतर में आध्यात्मिक यात्रा पर जाते हैं ताकि हम पिता-परमेश्वर की नज़दीकी पा सकें। फिर हम एक ऐसी अवस्था में पहुँच जाते हैं जहाँ हमारी आत्मा का मिलाप परमात्मा में हो जाता है और जब ये होता है तो जिस उद्देश्य से हम इस दुनिया में आए हैं वो पूरा हो जाता है।“

मनुष्य जीवन के उद्देश्य को समझाते हुए उन्होंने कहा कि, “अध्यात्म का रास्ता हममें से हर एक के लिए समान रूप से उपलब्ध है। अपने आपको आत्मिक रूप में अनुभव करना कि हम चेतन हैं, इस रास्ते पर यह एक पहला कदम है। उसके बाद ही हमारा संबंध पिता-परमेश्वर से हमेशा-हमेशा के लिए स्थापित हो जाता है और यह सब कुछ केवल ध्यान-अभ्यास के द्वारा ही संभव है।”

जन्मदिन के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने संत दर्शन सिंह जी महाराज को भी याद किया, जिनकी जन्म शताब्दी पिछले सप्ताह मनाई गई थी। अपने संदेश में उन्होंने कहा कि, ”हम महापुरुषों के जन्मदिन को सही मायनों में तभी मना सकते हैं जब हम उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन में ढालें और उनके द्वारा दिखाए मार्ग पर चलें।” इस अवसर पर संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने आदरणीय माता रीटा जी द्वारा गाए गए गुरुबानी शब्दों की विडियो सीडी “गुरु समान नहीं दाता”  का भी विमोचन किया। 

इस शुभ अवसर पर शांति अवेदना सदन, राज नगर नई दिल्ली में कैंसर पीड़ित रोगियों को, सफदरजंग हॉस्पिटल के पुनर्वास विभाग में मरीजों को, बेसहारा बच्चों की मदद करने वाली संस्थाओं जैसे स्माईल फाउंडेशन और प्रयास में अनाथ बच्चों को अथवा किशोर सहायता केन्द्र सोसायटी में नवयुवकों को मिशन की ओर से दवाईयाँ, फल-सब्जियाँ व अन्य उपयोगी वस्तुओं का मुफ्त वितरण किया गया।  संत राजिन्दर सिंह जी महाराज अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त आध्यात्मिक गुरु हैं जोकि संपूर्ण विश्वभर में ध्यान-अभ्यास के ़जरिये अंतरीय और बाह्य शांति लाने के लिए प्रयासरत हैं। आज के आधुनिक युग में संत राजिन्दर सिंह जी महाराज को 30 से भी ज्यादा वर्षों से पूरी दुनिया में शांति, प्रेम और मानव एकता के संदेश को फैलाने के लिए पहचाना जाता है।

एक भूतपूर्व वैज्ञानिक होने के कारण संत राजिन्दर सिंह जी महाराज विज्ञान और उसके निष्कर्षों के उदाहरणों से अध्यात्म की शिक्षाओं को समझाते हैं। तभी पूरी दुनिया आज यह स्वीकार कर रही है कि किस प्रकार विज्ञान और आध्यात्मिक एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज का संपूर्ण जीवन और कार्य प्रेम और निष्काम सेवा की एक निरंतर चलने वाली यात्रा है, जो दुनियाभर के लाखों लोगों को मानव जीवन के असली उद्देश्य को पाने में मदद करती है। वे हर एक समाज और धर्म के लोगों को ध्यान-अभ्यास की विधि सिखाकर पिता-परमेश्वर का अनुभव कराते हैं। इसलिए उनका पावन संदेश दुनियाभर के लोगों में आशा, प्रेम, मानव एकता और निष्काम सेवा के प्रति जागृति पैदा करता है। वे ध्यान-अभ्यास विषय पर लिखी जाने वाली पुस्तकों के विश्व प्रसिद्ध लेखक भी हैं। जिसके लिए उन्हें विभिन्न देशों द्वारा अनेक शांति पुरस्कारों के साथ-साथ पाँच डॉक्टरेट की उपाधियों से भी सम्मानित किया जा चुका है।

सावन कृपाल रूहानी मिशन के आज संपूर्ण विश्व में 3200 से अधिक केन्द्र स्थापित हैं तथा मिशन का साहित्य विश्व की 55 से अधिक भाषाओं में प्रकाशित हो चुका है। इसका मुख्यालय विजय नगर, दिल्ली में है तथा अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय नेपरविले, अमेरिका में स्थित है।

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