दिल्ली हिंसा: जांच को लेकर कोर्ट ने पुलिस को लगाई फटकार
नई दिल्ली। उत्तरी पूर्वी दिल्ली में 2020 के फरवरी में हुए दंगों से जुड़े एक और मामले में अदालत ने दिल्ली पुलिस को उसकी जांच के लिए फटकार लगाई है। सेशन जज विनोद यादव ने अपने एक आदेश में कहा है सांप्रदायिक दंगों के मामलों में अत्यधित संवेदनशीलता के साथ विचार किया जाना चाहिए लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सामान्य ज्ञान को भूल जाया जाए। रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री के संबंध में इस स्तर पर दिमाग का भी इस्तेमाल किया जाता है।”
Court 7 सितम्बर के अपने आदेश में अदालत ने जावेद नामक एक 22 वर्षीय युवक के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 436 के तहत गंभीर आरोप को हटाते हुए उसके खिलाप दंगा और लूटपाट जैसे तुलंना में कम गंभीर आरोपों को बरकरार रखा। केवल सिपाही का बयान पर्याप्त नहीं अदालत ने कहा था कि केवल सिपाही अशोक के बयान के आधार पर आईपीसी की धारा 436 नहीं लगाई जा सकती है जो घटना की तारीख पर इलाके में हल्का सिपाही के रूप में तैनात था। जब चारों शिकायतकर्ताओं ने अपनी लिखित शिकायत में इस संबंध में कुछ नहीं कहा तो उक्त पुलिस गवाह के बयान का इस संबंध में कोई महत्व नहीं है।
अदालत ने यह भी कहा, “यहां यह भी ध्यान रखना प्रासंगिक है कि जांच एजेंसी आज तक मामले में किसी अन्य आरोपी को नहीं पकड़ पाई है, जिसका अर्थ है कि मामले में अब तक कोई प्रगति या आगे की जांच नहीं हुई है और जांच एजेंसी अभी भी उसी जगह खड़ी है जहां पर जुलाई 2020 में थी जब अदालत ने आरोपी को जमानत पर छोड़ा था।
मजिस्ट्रेट की अदालत में होगी सुनवाई कोर्ट के आदेश के बाद जावेद के खिलाफ मामले की सुनवाई अब मजिस्ट्रेट की अदालत में होगी क्योंकि आगजनी के गंभीर अपराध वाले मामले को हटा दिया गया है। इसके पहले भी ट्रायल कोर्ट और उच्च न्यायालय ने दिल्ली दंगों के मामलों में दिल्ली पुलिस की जांच पर सवाल उठाया है। खासतौर पर चार्जशीट में प्रमुख गवाह के तौर पर केवल हल्का सिपाही को दिखाया गया है और दूसरा कोई प्रत्यक्षदर्शी या इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य नहीं है।