कोविड की वजह से कैटेरक्ट मोतियाबिंद की सर्जरी कराने में ना देरी

कोविड की वजह से अगर आप अपने कैटेरक्ट मोतियाबिंद की सर्जरी कराने में देर कर रहे है, तो इससे नुकसान हो सकता है डाक्टरों का कहना है कोविड़ से बचाव सबसे ज्यादा जरूरी है। लेकिन साथ में दूसरी बीमारियों को एक दम से छोड़ देना खतरनाक हो सकता है आई स्पेशेलिस्ट का कहना है कि कुछ लोग कोविड़ से इतने डरे हुए है कि वे मोतियाबिंद की सर्जरी को टाल रहे है, जिससे उनकी परेशानी बढ़ सकती है। उन्हें काला मोतियाबिंद का खतरा रहता है। इसलिए अपनी बीमारी को बढ़ाने के बजाएं उनका समय पर इलाज कराएं। हालांकि कोविड़ बिहेबियर और सरकार द्वारा जारी कोविड़ गाइड लाइन का सखती से पालन जरूर करें।

अगर समय पर मोतियाबिंद की सर्जरी नहीं की जाती है, तो मोतिया ज्यादा पक जाता है और यह बाद में ज्यादा परेशान करता है, इससे काला मोतिया का भी होने का खतरा रहता है, पहले 100 मोतियाबिंद के मरीजों में किसी एक का मोतिया ज्यादा पक जाता था या उसमें काला मोतिया होना शुरू हो जाता था, लेकिन अभी हर 10 में से दो मरीजों में ऐसा देखा जा रहा है।

मोतियाबिंद भारत में अंधेपन का सबसे बड़ा कारण है। सामान्य तौर पर यह 45 वर्ष की आयु के आंखों को अपना शिकार बनाता है और इसे बढ़ती हुई उम्र की समस्या के रूप में देखा जाता है। भारत में इसके लगभग एक करोड़ दस लाख मरीज हैं। मोतियाबिंद की वजह से होने वाले अंधेपन के साथ विडम्बना यह है कि शल्य क्रिया द्वारा इसका इलाज हो सकता है, लेकिन ग्रामीण इलाकों ने शल्य क्रिया सुविधाओं के अभाव के कारण ऐसे मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। जिन्हें मोतियाबिंद की सर्जरी की जरूरत है।

मोतियाबिंद क्या है
मानवीय क्रिस्टेलाइन लेंस जो कि स्पष्ट और पारदर्शी है, आंखों की दृष्टि प्रक्रिया का एक हिस्सा होता है। उम्र बढने के साथ-साथ आंखों का लेंस धुंधला और अपारदर्शी हो जाता है, जिससे सामान्य दृष्टि प्रभावित होती है। क्रिस्टेलाइन लेंस में होने वाली कोई भी अपरादर्शिता जिससे दृष्टि कम होती है, मोतियाबिंद या सफेद मोतिया कहा जाता है।

मोतियाबिंद के लक्षण
मोतियाबिंद की वजह से आंखों से संबंधित साधारण काम कठिन और कुछ मामलों में असंभव से हो जाते हैं। ऐसा निम्र कारणों से होता है। धुंधली एवं अस्पष्ट दृष्टि, रंगों की पहचान न हो पाना, लैंप तथा सूर्य की तेज रोशनी के प्रति अतिसंवेदनशीलता, रातों में कम दिखाई देना ड्राइविंग में परेशानी विशेष रूप से रात में, चश्में के नंबर में लगातार आदि।
मैने अभी हाल ही में 12 सर्जरी की जिसमें से तीन का मोतिया पक चुका था और एक में काला मोतिया का अटैक आ गया था। इसलिए जो लोग मोतियाबिंद के मरीज है और उनकी आंखों की रोशनी कम हो रही है, तो उन्हे अपना इलाज कराने में देरी नहीं करनी चाहिए। इससे बाद में सर्जरी मुश्किल हो जाती है और मरीज को पछताना पड़ सकता है।

करोना का  सबसे ज्यादा असर बुजुर्गो पर हुआ है और मोतियाबिंद की बीमारी भी बुजुर्गो में ज्यादा होती है, इस लिए लोग अपनी बीमारी को सह रहे है, लेकिन सर्जरी नहीं करा रहे है। अभी दिल्ली मे करोना की स्थिति में सुधार हुआ है अधिकतर लोग सक्रमित हो चुके है बहुत सारे लोगों ने वैक्सीन की दोनों डोज ले ली है। आंखों के अस्पताल में करोना का इलाज नहीं होता है, इसलिए डरने की जरूरत नहीं है और हैल्थ केयर वर्करों ने वैक्सीन की दोनों डोज ली है। इसलिए अपनी बीमारी को बढ़ाने के बजाएं समय पर इलाज कराएं। ताकि आप की आंखों की रोशनी बनी रहें।

मोतियाबिंद की सर्जरी के लिए आजकल फेम्टो लेजर असिटेड कैटरेक्ट सर्जरी का इस्तेमाल हो रहा है। यह बहुत मार्डन तकनीक है जिसमें गलती की संभावना बहुत कम होती है। इससे रीकवरी बेहतर होती है। आजकल मोतियाबिंद की सर्जरी में कृत्रिम लेंस ट्ायफोकल लेंस का इस्तेमाल खुब हो रहा है। इसमें दूर नजदीक और कंप्यूटर तीनों विजन में सुविधा होती है। इस लेंस के बाद चश्में की उपयोगिया बहुत कम रह पाती है।

डॉ. महिपाल सिंह सचदेव
निदेशक
सेंटर फॉर साइट ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल, नई दिल्ली

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