Editorial : घोषणा पत्रों के स्वरूप

Editorial: Format of manifestos

editorial 25 april 2024 open search

Editorial : लोकसभा चुनाव 2024 का जो घोषणा पत्र कांग्रेस ने जारी किया है उसमें यह कहा है कि गरीब महिलाओं को हर साल 1 लाख रुपए देंगे। भारतीय जनता पार्टी भी इसके पहले चुनाव में लगभग ऐसी ही अन्य घोषणाएं करती रही। घोषणा पत्र का चलन संबंधित पार्टी के द्वारा आने वाले समय में कौन से काम को हाथ में लेंगे और क्या होना चाहिए इसका एक विवरण या पांच वर्षीय कार्यक्रम जैसा होता है। परंतु घोषणा पत्रों के स्वरूप अब बदल रहे हैं।

1952 से लेकर 1967 तक के दलों के चुनाव घोषणा पत्रों को देखें तो उनमें मुख्यतरू नीति परिवर्तन के संदेश और वायदे ज्यादा होते थे। उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 500 रुपए तक के किसानों के कर्ज माफ करने का ऐलान किया था और इस आधार पर उन्हें वोट भी मिला, बाद में छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने भी किसानों के कर्ज माफी का ऐलान किया और उन्हें भी किसानों का समर्थन मिला।

पिछले लोकसभा चुनाव भाजपा ने भी यह वादा किया कि हम हर किसान को साल का रु. 6000 किसान सम्मान निधि देंगे और किसान उनकी ओर कुछ उन्मुख भी हुए। 1952 के बाद लगभग 2-3 दशकों तक पार्टियां जो घोषणा पत्र जारी करती थीं उनके पीछे एक उत्तरदायित्व की भावना तथा वस्तुपरक आंकलन होता था कि वहघोषणा कैसे पूरी कर सकेंगे? जिनके लिए वे जरूरी मानती हैं। घोषणा पत्र जारी करने की प्रक्रिया में एक और परिवर्तन आया है, आम तौर पर घोषणा पत्र पार्टियां बगैर किसी सामाजिक और आर्थिक आंकलन के करती हैं।

कई बार ऐसे अनुभव आए हैं कि कई चरणों के चुनाव पूरा होने के बाद या चुनाव प्रक्रिया लगभग समाप्ति के पहले घोषणा पत्र जारी करते हैं। इन घोषणा पत्रों के पीछे ना कोई ठोस योजना है, ना कोई आधार है, ना कोई आंकलन होता है। दरअसल अगर सच शब्दों में कहा जाए तो राजनीतिक दलों के घोषणा पत्र आम मतदाता के लिये ठगपत्र माने जाने चाहिए। लगभग सत्ताधारी दल या सत्ता आकांक्षी तथा कथित बड़े दलों की हो गई है कि वह भी मनमानी घोषणाएं कर रहे हैं। प्रधानमंत्री जी तो पार्टी घोषणा पत्र जारी किए बगैर ही पिछले लगातार दो माह से प्रतिदिन हजारों लाखों करोड़ की घोषणा करते रहे हैं यह घोषणा पूरी होगी या नहीं होगी?

पार्टियां घोषणा पत्रों के प्रति कितनी जिम्मेदार हैं अगर यह जानना हो तो इसी से जाना जा सकता है कि चुनाव के दो चरण के लगभग पूरा होने के करीब हैं तब जाकर कुछ दलों ने घोषणा पत्र जारी किए हैं। हम लोगों ने कई बार लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी की ओर से भारत के चुनाव आयोग से यह मांग की कि पार्टियों के घोषणा पत्र चुनाव के कम से कम से एक माह पहले जारी हों तथा इन घोषणा पत्रों का पंजीयन चुनाव आयोग में हो। इसके लिए पार्टियों से उनके आर्थिक आंकलन और पूर्ति के वचन का शपथ पत्र लिया जाए।

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